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प्रतिभा कटियार की कवितायें

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काफी आग्रहों के बाद प्रतिभा कटियार ने अपनी कवितायें भेजीं भी तो मेल का विषय लिखा- एक अकवि की कवितायें… लेकिन उनकी कवितायें और आलेख पढ़ते हुए मुझे तो वह हमेशा ही एक आदमक़द रचनाकार लगी हैं। आप भी पढ़िये और बताईये… वही बात उनके पास थीं बंदूकें उन्हें बस कंधों की तलाश थी, उन्हें बस सीने चाहिए थे उनके हाथों में तलवारें थीं, उनके पास चक्रव्यूह थे बहुत सारे वे तलाश रहे थे मासूम अभिमन्यु उनके पास थे क्रूर ठहाके और वीभत्स हंसी वे तलाश रहे थे द्रौपदी. उन्होंने हमें ही चुना हमें मारने के लिए हमारे सीने पर हमसे ही चलवाई तलवार हमें ही खड़ा किया खुद हमारे ही विरुद्ध और उनकी विजय हुई हम पर. उन्होंने बस इतना कहा औरतें ही होती हैं औरतों की दुश्मन, हमेशा... बंद रहने दो दरवाजा मत खोलो उस दरवाजे को मैं कहती हूं मत खोलो देखो न हवाएं कितनी खुशनुमा हैं और वो चांद मुस्कुराते हुए कितना हसीन लग रहा है. अभी-अभी गुजरा है जो पल तुम्हारे साथ भला उससे सुंदर और क्या होगा इस जीवन में. ना, देखो भी मत उस दरवाजे की ओर ध्यान हटाओ उधर से इस खूबसूरत

अरुण देव की कवितायें

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ढोल उस दिन शाम ढलने को थी कि कहीं से आने लगी थापो की आवाज़ कई दिनों से ढोल कुछ कह रहा था थप-थप में रुद्धा गला शोर में उसकी पुकार अनसुनी रह जाती इस लकदक भरे समय में जहां बिक रहा है अध्यात्म और हर खुशी के पीछे दिख जाता है कोई प्रायोजक ढोल न जाने कब से शोर के चुप हो जाने की राह देख रहा था पर शोर था कि अनेक रूपों में विचित्र ध्वनियों के साथ बढता ही जाता आज जरा सी दरार दिखी थी वहीं से झर रहा था प्रकाश की तरह मनुष्य की खुशी का आदिम उद्घोष अपनी थापों में लिखता हुआ मांगलिक सन्देश जिसे लेकर हवाएं पहुंच जाती हैं घर-घर और देखते ही देखते धरती के नए आये मेहमान की किलकारी के साथ जुट जाते हैं कंठ अब ढोल और उसका विनोद हर थाप पर और उंचा होता जाता नाद सुरीला होता जाता कंठ ढोल दुभाषिया है किसी शाम जब जुटती हैं परित्यक्त स्त्रियां वह करता अनुवाद उनके दुःख का अपने छंद में उसे याद है पन्द्रहवीं शताब्दी की वह कोई रात जब हाथ में लुकाठी लिए कबीर जैसा कोई खड़ा हो गया था बाज़ार में मशाल की रौशनी में चमकते उस जुलूस से आ रही थी पुकारती हुई आवाज क्या करे ढ

व्योमेश शुक्ल को बधाई दें…

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( इस वर्ष का भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार व्योमेश शुक्ल को दिया गया है। अपनी अद्भुत और सर्वथा नवीन भाषा के लिये जाने-जाने वाले व्योमेश ने बहुत कम समय में साहित्य की दुनिया में बेहद प्रभावशाली हस्तक्षेप किया है। एक सजग कवि होने के साथ-साथ व्योमेश ने आलोचना के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया है। मेरी ओर से उनको बधाई और सार्थक कवि कर्म के लिये शुभकामनायें। यहां प्रस्तुत हैं उनकी कुछ कवितायें) मेरी पसंद की तीन कवितायें… बाइस हज़ार की संख्या बाइस हज़ार से बहुत बड़ी होती है जून १९९६ की बात है ५२ वाराणसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस ने दूधनाथ चतुर्वेदी को टिकट दे दिया राष्ट्रीय महासचिव ख़ुद आये भूतपूर्व कुलपति गांधीवादी अर्थशास्त्र के बीहड़ अध्येता गुरुजी को पैर छूकर प्रत्याशी बनाने इसके बाद क्या हुआ ? वही हुआ जो होना था गुरुजी ४२ के बाद अबकी निकले अपने शहर में पचहत्त्तर की उमर में पैदल उन्हें पूरी आबादी अपने छात्रों छात्राओं में बँटी नज़र आई जबकि पूरी आबादी दूसरी वजहों में बँटी हुई थी उन्होंने पार्टी के भावी आर्थिक कार्यक्रमों के