संदेश

दिसंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इस ज़िंदां में कितनी जगह है

सुना है हाकिम सारे दीवाने अब ज़िंदां के हवाले होगे सारे जिनकी आँख ख़ुली है सारे जिनके लब ख़ुलते हैं सारे जिनको सच से प्यार सारे जिनको मुल्क़ से प्यार और वे सारे जिनके हाथों में सपनों के हथियार सब ज़िंदां के हवाले होंगे! ज़ुर्म को अब जो ज़ुर्म कहेंगे देख के सब जो चुप न रहेगें जो इस अंधी दौड़ से बाहर बिन पैसों के काम करेंगे और दिखायेंगे जो उनके चेहरे के पीछे का चेहरा सब ज़िंदां के हवाले होंगे जिनके सीनों में आग बची है जिन होठों में फरियाद बची है इन काले घने अंधेरों में भी इक उजियारे की आस बची है और सभी जिनके ख़्वाबों में इंक़लाब की बात बची है सब ज़िंदां के हवाले होंगे आओ हाकिम आगे आओ पुलिस, फौज, हथियार लिये पूंजी की ताक़त ख़ूंखार और धर्म की धार लिये हम दीवाने तैयार यहां है हर ज़ुर्म तुम्हारा सहने को इस ज़िंदां में कितनी जगह है! कितने जिंदां हम दीवानों के ख़ौफ़ से डरकर बिखर गये कितने मुसोलिनी, कितने हिटलर देखो तो सारे किधर गये और तुम्हें भी जाना वहीं हैं वक़्त भले ही लग जाये फिर तुम ही ज़िंदां में होगे! * ज़िंदा

दुःस्वप्न

दुःस्वप्न जबसे जाना पिता को लगभग तबसे ही जानता हूँ कि एक दिन नहीं होंगे पिता जैसे नहीं रहा उनका वह क्रोध जैसे चला गया धीरे-धीरे उनका भय और चुपचाप करुणा ने भर दी वह जगह जैसे ख़त्म होती गयीं उनसे जुड़ीं आदतें तमाम कितना क्रूर यह सोचना कितना कठिन इसे लिख पाना मैं लिखता हूँ कि एक दिन नहीं रहेगी पृथ्वी एक दिन टुकड़े - टुकड़े होकर बिखर जायेगा सूर्य और एक दिन मैं भी नहीं रहूँगा यहाँ …

फ़रीद ख़ान की कवितायें

चित्र
इस बार असुविधा में फरीद खान की कवितायें..युवा कवि फ़रीद ने पिछले कुछ समय में अपनी कविताओं से सबका ध्यान खींचा है. उनकी कवितायों में एक ख़ास तरह का टटकापन है जो उनके रंगकर्म से और समृद्ध हुआ दीखता है.. बाघ मुझे उम्मीद है कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए , बाघ बन जायेगा कवि, जैसे डायनासोर बन गया छिपकली, और कवि कभी कभी बाघ। वह पंजा ही है जो बाघ और कवि को लाता है समकक्ष। दोनों ही निशान छोड़ते हैं। मारे जाते हैं।   ..................................................... वह कुछ बोल नहीं सका।   चार साल थी उसकी उम्र, जब उसके पिता का देहांत हुआ। घर में लाश रखी थी। अगरबत्ती का धुँआ सीधे छत को छू रहा था। लोग भरे थे ठसा ठस। वह सबकी नज़रें बचा कर, सीढ़ियों से उतर कर बेसमेंट में खड़ी पापा की स्कूटर के पायदान पर बैठ जाता था। स्कूटर पोंछता और पोंछ कर ऊपर चला आता। मुझे पता नहीं, उसे मरने के मतलब बारे में पता था या नहीं। लेकिन मौत के बाद बदलते समीकरण को उसने उसी उम्र में देख लिया था। जो रो रहे थे, वे रो नहीं रहे थे। क़ुरान की तेलावत की

शिरीष भाई को जन्मदिन की बधाई

चित्र
आज हमारे प्रिय साथी शिरीष कुमार मौर्य का जन्मदिन है। उन्हें 'बड़े' और रचनात्मक जीवन की शुभकामनाओं सहित प्रस्तुत है उनकी एक कविता औरतों की दुनिया में एक आदमी वे दुखों में लिथड़ी हैं और प्रेम में पगी दिन-दिन भर खटीं किसी निरर्थक जांगर में बिना किसी प्रतिदान के रात-रात भर जगीं उनके बीच जाते हुए डर लगता है उनके बारे में कुछ कहते कुछ लिखते दरअसल अपने तमामतर दावों के बावजूद कभी भी उनके प्रति इतने विनम्र नहीं हुए हैं हम इन दरवाज़ों में घुसने की कोशिश भर से ही चौखट में सर लगता है यक़ीन ही नहीं होता इस दुनिया में भी घुस सकता है कोई आदमी इस तरह खंगाल सकता है इसे घूम सकता है यूँ ही हर जगह लेता हुआ सबके हाल-चाल और कभी खीझता नहीं इससे भले ही खाने में आ जाएं कितने भी बाल! यहां सघन मुहल्ले हैं संकरी गलियां पर इतनी नहीं कि दो भी न समा पाएं इनमें चलते देह ही नहीं आत्मा तक की धूल झड़ती है कोई भी चश्मा नहीं रोक सकता था इसे यह सीधे आंखों में पड़ती है कहीं भी पड़ाव डाल लेता है रूक जाता है किसी के भी घर किसी से भी बतियाने बैठ जाता है जहा