ख़ुतूत-ए-मोहब्बत पढ़ना हयात-ए-इश्क में कुरानख़्वानी है
२६ मई, १९६५ को जन्मे प्रेमचंद गांधी जयपुर में रहते हैं और राजस्थान प्रलेस के महासचिव हैं. उनका एक कविता संकलन 'इस सिम्फनी में ' प्रकाशित है. उन्हें मिले सम्मान हैं- पं0 गोकुलचन्द्र राव सम्मान - सांस्कृतिक लेखन के लिए(2005);जवाहर कला केन्द्र, जयपुर द्वारा लघु नाटक ‘रोशनी की आवाज’ पुरस्कृत (2004); राजेन्द्र बोहरा स्मृति काव्य पुरस्कार ‘इस सिम्फनी में’ के लिए (2007); लक्ष्मण प्रसाद मण्डलोई सम्मान ‘इस सिम्फनी में’ के लिए (2007) . उनकी ये कविताएँ उनके कविता संसार की विविधता का परिचय तो देती ही हैं साथ में उनके संवेदना के स्रोतों का पता भी देती हैं... चाहत लौटने की मैं फिर वहीं लौटना चाहता हूं कविता की उसी दुनिया में जहां सितारों की रोशनी-सी कविताएं फूटती हैं जहां एक पत्ता झड़ता है तो नई कोंपलें फूटने लगती हैं मैं इसी पृथ्वी पर रहना चाहता हूं जहां कुदरत से खिलवाड़ करने वालों ने मौसम का चक्र बदल दिया है जहां पूंजी की रक्त-पिपासा जंगल और आदिवासियों का सफाया कर रही है मैं वहीं रहना चाहता हूं जहां कविता की जरूरत मनुष्य को उम्मीद की तरह हो उम्मीद जो वनवासियो