अपना-अपना मानसून
बारिश देश भर में शुरू हो गयी है...हर किसी का इसे देखने का अपना नज़रिया है...असुविधा पर देखिये इसे कवि मनोज छाबड़ा की आँखों से... मानसून की पहली बारिश है मानसून की पहली बारिश है और पूरब से आये मज़दूर लौट रहे हैं अपने गाँव ये उनके घर बह जाने के दिन हैं पानी के साथ उनके सपनों के बह जाने के दिन हैं डरते-डरते लौटते हैं मज़दूर अपने गाँव वे तैयार हैं घर के बह जाने के लिए वे सहमे हैं -- ये उनके बच्चों के बह जाने के दिन न हों न हों पत्नी, माँ-बाप के खो जाने के दिन ट्रेन को देखते हैं और पटरी पर बहते लोहे के पहियों को देखकर कांप जाते है...