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ओबामा के रंग में यह कौन है- लीलाधर मंडलोई

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ख्यात और अब वरिष्ठ हो चले कवि लीलाधर मंडलोई की यह कविता कल भाई कुमार मुकुल की फेसबुक वाल पर पढ़ी. पढने के बाद जिस कदर रोमांचित हुआ, मंडलोई जी को फोन लगाने से खुद को रोक नहीं पाया. पर उस तरफ उतनी ही निस्पृह आवाज़ थी...प्रशंसा की तमाम कोशिशों को अपने ठहाके से असफल करने के बाद पूछती हुई - 'तू दिल्ली आता है तो मिलता क्यूँ नहीं?' खैर, यह कविता मुझे हर पाठ के बाद और रोमांचित कर रही है. अभी तुरत इस पर कुछ लंबा लिख पाने की हालत में हूँ नहीं. इतना ज़रूर कहूँगा कि हमारे समय में यह एक बड़े सच से टकराती हुई, सवाल करती हुई एक ऎसी कविता है जहाँ कवि किसी ऊंचे मंच से प्रवचन नहीं कर रहा, बल्कि भीड़ के बीच बोलने-बतियाने-सवाल करने की कोशिश कर रहा है. बाक़ी आप बताइये.. .  ओबामा के रंग में यह कौन है...   मैं पढा-लिखा होने के गर्व से प्रदूषित हूं मैं महानगर के जीवन का आदी, एक ऐसी वस्‍तु में तब्‍दील हो गया हूं कि भूल-बैठा अच्‍छाई के सबक मेरा इमान नहीं चीन्‍ह पाता उन गुणों को और व्‍यवहार को, जो आदिवासियों की जीवन-पद्धति में शुमार मौलिक और प्राकृतिक अमरता है और एक उम्

प्रभात की कविताएँ...

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कविता समय सम्मान -२०१२ से सम्मानित प्रभात की कविताओं पर चयन समिति ने लिखा है -  ' प्रभात की कविता सफल, चमकती दुनिया का अपनी क्रांतिकारी नैतिकता से मखौल उड़ाने की बजाय खुद कवि या कविता की सफलता पर संदेह करने वाली ऐसी कविता है जो आज्ञाकारी, विमर्श-सुलभ और स्पर्शकातर नहीं है। सामाजिकताओं/निजताओं, लोक/नगर, प्रगति/कला, मनुष्य/मनुष्येत्तर के सुलभ विरोध या उनके मासूम एकत्व के बरक़्स उनके गहरे संश्लेषण के इस मजबूत सबआल्टर्न स्वर को  कविता समय युवा सम्मान  2012  से सम्मानित करते हुए ‘कविता समय’ सम्मानित महसूस करता है।'  राजस्थान के एक जनजातीय समुदाय से आने वाले प्रभात अपने अगल-बगल की दुनिया के लोकेल से गहरे संबद्ध होते हुए उसके ग्लोबल सन्दर्भों की सटीक पहचान करने वाले कवि हैं. बिना किसी शोरगुल के एक लंबे समय से कवि-कर्म में संलग्न प्रभात की कविताओं को हिन्दी में बड़े गौर से पढ़ा गया है. उनकी कुछ कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं और उनकी ताज़ा लंबी कविता यहाँ पढ़ी जा सकती है. याद (एक) सूखी धरती पर झुकती है जैसे  खामोश काली घटाएं  झुक रही है मेरे जीवन के सूखे विवरणों

कविता समय सम्मान- २०१२ से सम्मानित कवि इब्बार रब्बी की एक पुरानी कविता

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इस वर्ष का कविता समय सम्मान वरिष्ठ कवि इब्बार रब्बी को दिया गया है. सम्मान की घोषणा के साथ चयन समिति ने लिखा है   ' इब्बार रब्बी की कविता हाशिये के पक्ष में खड़ी ऐसी कविता है जो खुद के लिये ‘केन्द्रीय’ महत्व नहीं चाहती; कमजोर के हक़ काम करती है लेकिन ‘शक्ति केंद्र’ की तरह बर्ताव नहीं करती और सामाजिकता से अपना जीवन-द्रव्य पाने के बाद खुद कवि के व्यक्तित्व का लापरवाह प्रदर्शन नहीं बन जाती। हाशिये पर रहने की; खुद को ही दृश्य मानने, मनवाने से लगातार बचने की कठिन नैतिकता के लिये इब्बार रब्बी की कविता को  कविता  समय सम्मान 2012  से सम्मानित करते हुए ‘कविता समय’ सम्मानित महसूस करता है।' इस अवसर पर असुविधा पर प्रस्तुत है उनकी एक बहुचर्चित पुरानी कविता...वर्षों पहले इसे पढते हुए ही रब्बी साहब से पक्की दोस्ती हुई थी...  भागो  दुनिया के बच्चो बचो और भागो वे पीछे पड़े हैं तुम्हारी खाल खींचने को हड्डियाँ नोचने को बड़े तुम्हें घेर रहे हैं हीरे की तरह जड़ रहे हैं ठोक-पीट कर कविता में बच्चो, पेड़, चिड़ियो रोटी और पहाड़ो भागो क्रान्ति तुम छिपो हिन्दी के कवि आ रहे हैं