रवि कुमार की कविताएँ
रवि कुमार अपने कवि होने के व्यामोह से लगभग मुक्त रचनाकार हैं. जब वह कविता नहीं लिख रहे होते तो कविता पोस्टर बना रहे होते हैं, जब कविता-पोस्टर नहीं बना रहे होते तो स्केचेज़ बना रहे होते, वह नहीं तो किसी जुलूस में शामिल होते हैं और जब यह सब नहीं कर रहे होते तो अपने क्रांतिकारी पिता की विरासत को सहेजने और आगे बढ़ाने के लिए अपने कामरेडों से विचार-विमर्श कर रहे होते हैं, अभिव्यक्ति के नए अंक की तैयारी में होते हैं. जब फेसबुक जैसी जगहों पर लोग सिर्फ अपना लिखा पढाने के लिए दिन-रात लगे होते हैं तो वह अक्सर दूसरों के ब्लाग्स की बेहतरीन सामग्री शेयर करते हुए दीखते हैं. उनकी यह कवितायेँ काफी पहले मिली थीं लेकिन अपने भुलक्कड़पन के चलते आज लगा पा रहा हूँ...और वह याद दिलाने वालों में से तो हैं नहीं. अहम नाक़ाबिलियतों के बाबजू्द जो अपना ज़मीर नहीं मार सकते वे इस मौजूदा दौर में ज़िन्दा रहने के काबिल नहीं मैं उन्हीं में से एक हूं मेरा वज़ूद मुझसे ख़फ़ा है क्योंकि मैंने रूह से वफ़ा करनी चाही और अपना ज़मीर नहीं मार पाया इतनी अहम नाक़ाबिलियतों के बाबजू्द मैं ज़िन्दा हूं