रवि कुमार की कविताएँ
रवि कुमार अपने कवि होने के व्यामोह से लगभग मुक्त रचनाकार हैं. जब वह कविता नहीं लिख रहे होते तो कविता पोस्टर बना रहे होते हैं, जब कविता-पोस्टर नहीं बना रहे होते तो स्केचेज़ बना रहे होते, वह नहीं तो किसी जुलूस में शामिल होते हैं और जब यह सब नहीं कर रहे होते तो अपने क्रांतिकारी पिता की विरासत को सहेजने और आगे बढ़ाने के लिए अपने कामरेडों से विचार-विमर्श कर रहे होते हैं, अभिव्यक्ति के नए अंक की तैयारी में होते हैं. जब फेसबुक जैसी जगहों पर लोग सिर्फ अपना लिखा पढाने के लिए दिन-रात लगे होते हैं तो वह अक्सर दूसरों के ब्लाग्स की बेहतरीन सामग्री शेयर करते हुए दीखते हैं. उनकी यह कवितायेँ काफी पहले मिली थीं लेकिन अपने भुलक्कड़पन के चलते आज लगा पा रहा हूँ...और वह याद दिलाने वालों में से तो हैं नहीं.
अहम नाक़ाबिलियतों के बाबजू्द
जो अपना ज़मीर नहीं मार सकते
वे इस मौजूदा दौर में
ज़िन्दा रहने के काबिल नहीं
मैं उन्हीं में से एक हूं
वे इस मौजूदा दौर में
ज़िन्दा रहने के काबिल नहीं
मैं उन्हीं में से एक हूं
मेरा वज़ूद मुझसे ख़फ़ा है
क्योंकि मैंने रूह से वफ़ा करनी चाही
और अपना ज़मीर नहीं मार पाया
इतनी अहम नाक़ाबिलियतों के बाबजू्द
मैं ज़िन्दा हूं
यह एक खोजबीन का मसअला है
उन तमाम खु़दावंद माहिरीन के लिए
जिन्होंने इस्पात के ऐसे मुजस्समें ईज़ाद किए
जिनके कि सीने में धड़कन नहीं होती
और जिनकी दिमाग़ जैसी चीज़
उनकी उंगलियों की हरकतों की मोहताज़ है
मैं ज़िन्दा हूं
यह एक खोजबीन का मसअला है
उन तमाम खु़दावंद माहिरीन के लिए
जिन्होंने इस्पात के ऐसे मुजस्समें ईज़ाद किए
जिनके कि सीने में धड़कन नहीं होती
और जिनकी दिमाग़ जैसी चीज़
उनकी उंगलियों की हरकतों की मोहताज़ है
मैं यह राज़
लोगों में फुसफुसाता हूं
वे चौंक उठते हैं सहसा
फिर मुस्कुरा देते हैं
एक हसीन मज़ाक समझकर
मैं चौराहों पर चीख़ चीख़ कर
लोगों की तरफ़
उछालता रहता हूं यह राज़
अजीब नज़रों से बेधा जाता है मुझे
लोगों की तरफ़
उछालता रहता हूं यह राज़
अजीब नज़रों से बेधा जाता है मुझे
बेखौ़फ़ हैं सभी खुदावंद माहिरीन
क्योंकि अभी यह क़यामतख़ेज राज़
लोगों के गले नहीं उतर रहा
और मेरे सरफिरा होने की
अफ़वाहें जोरों पर हैं
क्योंकि अभी यह क़यामतख़ेज राज़
लोगों के गले नहीं उतर रहा
और मेरे सरफिरा होने की
अफ़वाहें जोरों पर हैं
चाहे वे मेरी तरफ़ से
अपने आपको कितना भी बेपरवाह दिखाएं
पर एक-एक हरकत मेरी
पूरी शिद्दत से परखी जा रही है
जिस दिन भी मैं
इतनी अहम नाक़ाबिलियतों के बाबजू्द
अपना ज़िन्दा होना
साबित कर सकने की क़ूवत पा लूंगा
इतनी अहम नाक़ाबिलियतों के बाबजू्द
अपना ज़िन्दा होना
साबित कर सकने की क़ूवत पा लूंगा
मुझे मुर्दा करार दे दिया जाएगा
चाहे मुझे पागल करार दिया जाए
कोई यदि पूछेगा
सबसे बेहतर रंग कौनसा है
मैं कहूंगा मिट्टी का
यदि कोई पूछेगा
सबसे दिलकश गंध किसकी है
मैं कहूंगा पसीने की
कोई यदि पूछेगा
स्वाद किसका सबसे लज्जत है
मैं कहूंगा रोटी का
यदि कोई पूछेगा
स्पर्श किसका सबसे उत्तेजक है
मैं कहूंगा आग का
कोई यदि पूछेगा
किसकी आवाज़ में सबसे ज़्यादा खनक है
मैं कह उठूंगा मेरी ! तुम्हारी !
मैं समन्दर के बिना कामिल नहीं
मेरी बुलन्दियों से हमेशा
मुख़ालिफ़त रही
और गहराइयों के प्रति
मक़नातीसी खिंचाव
इसी सबब मुझसे
इक समन्दर दरयाफ़्त हो गया
ज़मीं मुझे बुलन्दियों के सिम्त
सफर पर देखना चाहती थी
और समन्दर मुझे
अपने में उतर आने की
ख़ामोश दावत दे रहा था
हवासबाख़्ता मैं
समन्दर किनारे ठगा सा रह गया
बुलन्दियों को फतह करना
शायद मेरी दस्तयाबी रहे
पर गर्तों में शिरकत करना
मेरे वज़ूद की एक उम्दा जरूरत है
लहर हो चुका मेरा दिल
समन्दर के साथ हिलौरें ले रहा है
समन्दर का नहीं होना
मेरे वज़ूद का नहीं होना है
मेरे पास कई ख़्वाब हैं
मेरे पास कई ख़्वाब हैं
ख़्वाबों के पास कई ताबीरें
पर लानतें भेजने वाली बात यह है
मुझे मेरे ख़्वाबों की ताबीर नहीं मालूम
मैंने उसे अपने ख़्वाब बताए
और ताबीर जाननी चाही
वह फ़िक्रज़दा हो गई
और मकडियों के जालों से भरी
पुरानी अटारी को देर तक खखोरती रही
फिर उसने हर मर्तबान उलट कर देखा
बिल आखिर
जब कुछ बूझ पाना बेमानी हो गया
ज़िद करके उसने मेरी बांह पर
काले डोरे से एक ताबीज बांधा
जिसे उसने किसी फकीर से
तमाम बलाओं को पल में उडा़ देने वाली
एक फूंक के साथ
चार आने के बदले में लिया था
और मेरे बिस्तर के नीचे
चुपचाप एक खंजर रख दिया
जैसा कि अक्सर मेरी दादी
फिर मेरी माँ करती आई थी
जब मैं बचपन में
सोते में डर जाया करता था
और सुब्हा बिस्तर गीला मिलता था
मैं उसकी हर हरकत को
अपने ख़्वाबों की ताबीर तस्लीम कर रहा था
अब वह सोते वक्त
मेरी पेशानी का बोसा लिया करती है
और मेरे बालों में उंगलियां फिराते
सीने पर सिर टिका कर
जाने कब सो जाया करती है
उसके चिंतित न्यौछावर स्नेह के चलते
मैं अपनी सपाट छातियों में
लबालब दूध महसूस करता हूं
उसे नहीं मालूम शायद
ख़्वाब रात के अंधेरे और
नींद के मुंतज़िर नहीं होते
उसे यह भी नहीं मालूम
कि सुर्ख़ आफ़ताब को
नीले आसमां में ताबिन्दा होता देखने के ख़्वाब
स्याह आफ़ताब के सामने ही
गदराया करते हैं
पर वह रोज़ाना मेरे लिए
ख़्वाबों की ताबीर पा जाने की
दुआ मांगा करती है
मेरे पास ऐसे कई ख़्वाब हैं
ख़्वाबों के पास ऐसी कई ताबीरें
और शायद मैं
फौरी नतीज़ों से खौफ़ज़दा हूं
ख़्वाब – सपने, ताबीर – ख़्वाबों का मतलब, नतीज़ा, बिल आखिर – अंततःतस्लीम करना – मानना, मुंतज़िर – इंतज़ार में, ताबिन्दा – प्रतिष्ठित
हमारे पास और शामें नहीं
मैंने उससे कहा
मुझे तुमसे कुछ कहना है
उसने मेरी नज़रों को पढा़
और खिलखिलाकर हँस पड़ी
झडे़ हुए फूलों की महक से
मेरी जीभ बिंध गई
एक और शाम खा़मोश गुजर गई
मैंने उससे कहा
मुझे तुमसे कुछ कहना है
उसने मेरी सांसों की गर्मी को छुआ
और अपनी ठंडी हथेलियों से
मेरा चहरा थाम लिया
मुझे पाला पड़ गया
एक और शाम सर्द गुजर गई
मैंने उससे
एक बार फिर कहना चाहा
मुझे तुमसे कुछ कहना है
उसने आवाज़ की टूटन को भांप कर
मेरे कांपते लबों का बोसा लिया
और मेरे कान में फुसफुसाई
मैं जानती हूं मेरे सरताज़
उसकी मुंज़मिद नज़रों से
बिजली कड़की
और मैं जड़ हो गया
हमारे पास
यूं ही गुजार देने के लिए
अब और शामें नहीं बच रही थी
स्त्री बीमार भी नहीं होना चाहती
स्त्री बाहर नहीं है
वह सिर्फ़ बीमार है
जब स्त्री बीमार होती है
पूरा घर अस्तव्यस्त सा हो जाता है
पुरूष स्त्री बनने के प्रयासों में
चिड़चिड़ा रहे होते हैं
बच्चे यह नहीं समझ पा रहे होते हैं
कि वे खुश हैं या दुखी
स्त्री बीमार भी नहीं होना चाहती
वह नहीं चाहती
कि घर को उसके बिना दुरस्त रहने की
आदत हो जाए
पुरुष भी यही चाहते हैं
बच्चे भी इसी में भलाई सी महसूसते हैं
आम सहमति से
आम घरों की स्त्रियां
घर में ही तब्दील हो जाना चाहती है
टिप्पणियाँ
आभार...थोड़ा सा अतिरंजित शब्दों के लिए.. :-)
सबसे बेहतर रंग कौनसा है
मैं कहूंगा मिट्टी का
मैं यह राज़
लोगों में फुसफुसाता हूं
वे चौंक उठते हैं सहसा
फिर मुस्कुरा देते हैं
एक हसीन मज़ाक समझकर मैं चौराहों पर चीख़ चीख़ कर
लोगों की तरफ़
उछालता रहता हूं यह राज़
धन्यवाद अशोक जी /रवि जी
अपना ज़िन्दा होना
साबित कर सकने की क़ूवत पा लूंगा
मुझे मुर्दा करार दे दिया जाएगा "...... वाह ! क्या बात है ! जबरदस्त और मारक पंक्तियाँ ! सभी कविताएँ अच्छी हैं लेकिन मुझको "अहम नाक़ाबिलियतों के बाबजू्द" सबसे ज्यादा पसंद आयी ! अशोक जी को आभार , इन्हें पढवाने के लिए और रवि जी को बधाई !
अपने आपको कितना भी बेपरवाह दिखाएं
पर एक-एक हरकत मेरी
पूरी शिद्दत से परखी जा रही है
जिस दिन भी मैं
इतनी अहम नाक़ाबिलियतों के बाबजू्द
अपना ज़िन्दा होना
साबित कर सकने की क़ूवत पा लूंगा......
मुझे मुर्दा करार दे दिया जाएगा ....बहुत ही मारक और मानीखेज कवितायेँ.....सभी पसंद आई, अंतिम कविता ने साधारण होते हुए भी दिल छू लिया.......बधाई रवि कुमार जी.....शुक्रिया अशोक.....
अपने आपको कितना भी बेपरवाह दिखाएं
पर एक-एक हरकत मेरी
पूरी शिद्दत से परखी जा रही है
जिस दिन भी मैं
इतनी अहम नाक़ाबिलियतों के बाबजू्द
अपना ज़िन्दा होना
साबित कर सकने की क़ूवत पा लूंगा......
मुझे मुर्दा करार दे दिया जाएगा ....बहुत ही मारक और मानीखेज कवितायेँ.....सभी पसंद आई, अंतिम कविता ने साधारण होते हुए भी दिल छू लिया.......बधाई रवि कुमार जी.....शुक्रिया अशोक.....
अपना ज़िन्दा होना
साबित कर सकने की क़ूवत पा लूंगा
मुझे मुर्दा करार दे दिया जाएगा ..........
बहुत प्रभावशाली प्रस्तुति ! सभी कविताए पूरी ईमानदारी से लिखी गइ हैं ! रवि जी को बधाई और आपका आभार !
आपका अपना
विजय कुमार
9849746500
इतनी अहम नाक़ाबिलियतों के बाबजू्द
अपना ज़िन्दा होना
साबित कर सकने की क़ूवत पा लूंगा
मुझे मुर्दा करार दे दिया जाएगा
इन धारदार कविताओं ने तो ज़िंदा होने का सबूत दे भी दिया. इंतज़ार है मुर्दा घोषित किये जाने का.