दुर्गम रास्तों का चितेरा कवि : पवन करण
(अग्रज कवि पवन करण की स्त्री विषयक कविताओं पर यह आलेख काफी पहले, स्त्री मेरे भीतर के प्रकाशन के थोड़े दिनों बाद ही, लिखा था. इधर जब आलोचनात्मक लेखों को एक जगह करके किताब बनाने का विचार बना तो इसे फिर से ढूँढा. इस बीच उनकी दो और किताबें आ चुकी हैं और उनमें शामिल कुछ कविताओं के मद्देनज़र लेख में कुछ संशोधन भी किये गए हैं. देखिये) ( एक ) जो अपनी ज़िन्दगी में अपने हाथों एक बार अपना घोसला ज़रूर बनाता है मैं उस पक्षी की तरह हूँ (पिता का मकान) पवन करण हमारे समय के बहुप्रकाशित , बहुचर्चित , बहुपुरस्कृत और बहुविवादित कवि है। पिछले कुछ एक वर्षों में साहित्य में सिकुडते जा रहे कविता के स्पेस के बावजूद उन्हें जितने आलोचक -पाठक नसीब हुए हैं वह किसी भी युवा कवि के लिये , आश्वस्ति और इर्ष्या , दोनों का विषय हो सकते है। वर्तमान साहित्य के कविता विशेषांक से प्रकाश में आये पवन के पहले संकलन ‘ इस तरह मैं’ का व्यापक स्वागत हुआ था लेकिन दूसरे संकलन ‘ स्त्री मेरे भीतर ‘ ने तो जैसे साहित्य के प्याले में तूफान सा ही उठा दिया । स्त्री के भिन्न -भिन्न रूपों क