तोतापन, काव्यधर्मिता और रघुवीर सहाय
रघुबीर सहाय की काव्य-धर्मिता · उमेश चौहान रघुबीर जी आज जीवित होते तो हिन्दी के तमाम शीर्षस्थ कवियों के हमउम्र होते और श्रेष्ठतम समकालीन कवि होते। मृत्यु के उपरांत भी कविता की समकालीनता की दृष्टि से उन्हें आज का श्रेष्ठतम कवि माना जा सकता है। समय-समय पर तमाम आलोचकों ने इस बारे में अपने विचार रखे हैं कि रघुबीर सहाय जी ने कवि-कर्म को किस रूप में देखा, कविता लिखने के बारे में उनकी धारणा या मान्यता क्या थी, उन्होंने अपनी धारणा के अनुरूप गढ़े इस कवि-धर्म को किस प्रकार से साधा और काव्य-धर्मिता से जुड़ी अपनी पंक्तियों के माध्यम से वे कैसे कवियों को भी राह दिखाने वाले एक महत्वपूर्ण कवि बन गए। रघुबीर जी एक जाने-माने पत्रकार व संपादक भी थे अतः अपनी कविताओं में उन्होंने एक पत्रकार की आदत के मुताबिक कविता के बैक स्टेज की भी खूब पड़ताल की और उसकी विसंगतियों तथा दुष्प्रवृत्तियों को उजागर करते हुए उन्होंने काव्य-रचना के उजले संसार में प्रवेश करने के अनेकों द्वार खोले हैं। यहाँ एक नितान्त पाठकीय दृष्टिकोण के साथ रघुबीर जी की काव्य-धर्मिता के बारे में कुछ बातों पर पुन