दुःख से कितना भी भरी रहे एक कविता एक समुद्र का विकल्प होती है.- अरविन्द की कवितायें
अरविन्द की कवितायें इधर पत्रिकाओं और ब्लाग्स में लगातार आई हैं. उनके यहाँ कविता के लिए ज़रूरी ताप भी है और वह मिनिमलिज्म भी जो इधर अक्सर या तो कम होता गया है या एक गूढ़ और अपठनीय शिल्प में रूपांतरित. अरविंद की कविताएँ पढ़ते हुए हमारे आसपास की दुनिया के कुछ बेहद परिचित दृश्य एक मानीखेज बिम्ब की शक्ल में कुछ इस तरह आते हैं कि वे चमत्कृत करने की जगह भीतर के किसी खालीपन को भरते से लगते हैं. ज़ाहिर है कि हम उन्हें बेहद उम्मीद के साथ देख रहे हैं.. . Sabin Corneliu Burga की पेंटिंग यहाँ से साभार एक सोचता हूँ एक तस्वीर लूँ तुम्हारी जिसमे तुम्हारे बगल में खड़ा मै नहीं रहूँगा बस बगल में खड़ा रहने की मेरी इच्छा रहेगी तस्वीर लेने के ठीक पहले जो गुजर गयी हो एक चिड़िया वह आये उसमे और ठीक बाद गिर रही पत्ती भी. तस्वीर में बालों की एक लट जो चहरे पर नहीं गिरेगी की वजह हवा नहीं रहेगी वह लट गिर जाये की बस एक क्रिया रहेगी. एक मद्धम मुस्कान जो तुम मेरे लिए हंसोगी वह नहीं रहेगी उपजा था जो गुस्सा तुम्हारा नाक को लाल करते थोड़ी देर पहले थोड़ी देर से आने पर वह