नवाबों के शहर में केदार जी और मैं - उमेश चौहान
दिल्ली से निकलने वाली पत्रिका 'कथा' में उमेश चौहान का यह स्मृति-आरेख प्रकाशित हुआ. वरिष्ठ कवि केदार नाथ सिंह की गहन आत्मीय छवियों से भरा-पूरा इस आलेख में उमेश जी की पुस्तक के विमोचन समारोह की रपट भी बड़े अनूठे ढंग से आई है. उमेश चौहान लगभग चौबीस घंटे के लखनऊ प्रवास के बाद वापसी के लिए घर से बाहर निकलते ही हमेशा की तरह हमें विदा करने के लिए सोनू गेट की बगल में आ खड़ा हुआ था। लगभग तीन-चार साल का प्यारा सा बच्चा। उसे देखते ही प्यार उमड़ता था। हर बार की तरह उसे सामने पाते ही मेरा हाथ अपने आप जेब में चला गया और मैंने सौ रुपए का एक नोट निकालकर उसके हाथ में थमाना चाहा कि अचानक केदारनाथ सिंह जी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोले, - “ नहीं, यह मेरी तरफ से होगा। ” उन्होंने अपने कुर्ते की जेब से सौ का नोट निकालकर बड़े वात्सल्य के साथ सोनू को पकड़ाया। सोनू मंद-मंद मुस्कराता हुआ उन्हें देख रहा था। केदार जी की आँखों में आनन्द तैर रहा था उस समय। हम सब केदार जी के इस वात्सल्य-भाव से अभिभूत थे। यह हमारे लिए उनके विशाल कवि-हृदय में छिपे हुए एक और विकार-केन्द्र के एकायक उद्घाटित होन