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नवनीत सिंह की कवितायें

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नवनीत सिंह बिलकुल नए कवि हैं. जब उन्होंने इस इसरार के साथ कवितायें मेल कीं कि 'न पसंद आये तो भी प्रतिक्रिया दें' तो उनकी कविताओं को गौर से पढ़ना ज़रूरी लगा. इनमें अभी कच्चापन है, अनगढ़ता भी और शब्द स्फीति भी,  लेकिन इन सबके साथ एक गहरी सम्बद्धता और रा एनर्जी है जो उनके भीतर की संभावना का पता देती है. भूमंडलोत्तर काल में युवा हुई पीढ़ी के अपने अनुभव हैं और उन्हें दर्ज़ कराने के लिए अपनी भाषा -अपनी शैली. वहां 'वृक्ष और टहनियों के दर्द' का एहसास भी है और 'धनुष-बाण के कारखाने बंद ' किये जाने का अनुभव भी. लोगों को पहचानने के उनके अपने नुस्खे हैं, जिनसे आप असहमत भले हों पर जिन्हें नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए. असुविधा पर इस नयी आवाज़ का स्वागत....   चित्र यहाँ से साभार  उम्मीदें बढ़ रही है हमारे निशाने मे चिड़िया की आँख नहीं थी, वृक्ष की टहनियों और पत्तियों का दर्द था, धनुष बाण के कारखाने बन्द करने के बाद हमे निराशावादी कहना हमारी संवेदना का मजाक उड़ाना था, आशावादिता हारने के बाद, खिसियाहटो को बचाने मे काम आयी, उन गुरुओं को आज भी हमसे काफी उम्

विमल चन्द्र पाण्डेय की नई कहानी

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  जाने-माने युवा कथाकार विमल चन्द्र पाण्डेय की यह कहानी इलाहाबाद से निकलने वाली पत्रिका अनहद में प्रकाशित हुई है. सातवां कुआँ उसके दिन की शुरूआत ही ख़राब हुयी थी । उसकी नींद सुबह पांच बजे की बजाय चार बजे एक सुबह का सपना देखकर टूट गयी थी जिसमें पानी के गिलास में नाखून डालने की वजह से उसे नौकरी से निकाल दिया गया था। अगले एक घण्टे तक वह बिस्तर पर करवट बदलता रहा था और सुबह के सपने के सच हो जाने की आशंका से ग्रस्त रोटी कमाने के नये तरीके सोचता रहा था। वह अपनी सोचों में इतना भीतर तक उतर चुका था कि जब उसकी बीवी अपने कपड़े संभालते बिस्तर पर आयी तो उसने ’ कहां थी इतनी देर से ’ की बजाय पूछा कि ’ क्या गांव में किसी के सुबह के सपने सच हुये हैं ’ । रामदयाल पत्नी , कुत्तों और दुनिया यानि तीन चीज़ों से परेशान था। सभी कुत्तों को वह खत्म नहीं कर सकता था , पत्नी का क्या करना है उसे समझ नहीं आता था और दुनिया को बदला भी जा सकता है , यह उसके विकल्प से बाहर की चीज़ थी। उसकी पत्नी और दुनिया उससे अजनबियों की तरह बर्ताव करते थे। पत्नी के खि़लाफ़ वह जब चाहता सबूत जुटा सकता था और शायद उसकी