शिरीष कुमार मौर्य की ताज़ा कविताएं
शिरीष की ये कवितायें अभी बिलकुल हाल में लिखी गयी हैं. इन पर अलग से किसी विस्तृत टिप्पणी की जगह सिर्फ़ इतना कि इन्हें पढ़ते हुए मुश्किल हालात में एक कवि की प्रतिक्रिया के भीतरी तहों में उठती उथल-पुथल को न सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है बल्कि अपने एकदम करीब घटित होते अनुभव भी किया जा सकता है. पेंटिंग पाल नैश की स्थायी होती है नदियों की याददाश्त कितनी बारिश होगी हर कोई पूछ रहा है कुछ पता नहीं हर कोई बता रहा है बारिश तो बारिश की ही तरह होती है पर लोग लोगों की तरह नहीं रहते रहना रहने की तरह नहीं रहता भीगना भीगने की तरह नहीं होता नदियां मटमैले पानी से भरी बहने की तरह बहती हैं बहने के वर्षों पुराने छूटे रास्ते उन्हें याद आने की तरह याद आते है वे लौटने की तरह लौटती हैं पर उनकी आंखें कमज़ोर होती हैं वे दूर से लहरों की सूंड़ उठा कर सूंघती हैं पुराने रास्ते और हाथियों की तरह दौड़ पड़ती हैं बारिश नदियों को हाथियों का बिछुड़ा झ़ंड बना देती है जो हर ओर से चिंघाड़ती बेलगाम आ मिलना चाहती हैं किसी पुरानी जगह पर जहां उनके पूर्वजों की अस्थि