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सुनो कि इस देश में कैसे मरता है किसान! - उमेश चौहान

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किसानों की आत्महत्या हमारे समय की ऐसी परिघटना है जिसे लेकर राजनीतिक वर्ग से बौद्धिक वर्ग तक अपने आकस्मिक विलापों से आगे नहीं जा पाते. वरना जिस देश में लाखों किसान आत्महत्या कर चुके हैं और इस आंकड़े में रोज़ वृद्धि ज़ारी है, उस देश ने नीतियों को लेकर कोई पुनर्विचार न हो, यह कैसे संभव था? लगता है कि हम विकास और उसके परिणामों को शहरी उच्चवर्गीय अवधारणा मान चुके हैं और हमारी चिंताएं सेंसेक्स के गिरने-उठने से तय होती हैं, इनमें अब किसानों के जीने मरने के लिए कोई जगह नहीं है. लेकिन कविता का तो काम ही उस सच को कहना है जिसे दबाने की हरचंद कोशिश की जाती है. उमेश चौहान ने इस कविता में वही मुश्किल और असुविधाजनक सवाल पुरज़ोर तरीक़े से उठाया है. सुनो, सुनो, सुनो! पैदा हुए उन्नीस बोरे धान मन में सज गए हज़ारों अरमान लेकिन निर्मम था मण्डी का विधान ऊपर था खुला आसमान नीचे फटी कथरी में किसान रहा वह कई दिनों तक परेशान फिर भी नहीं बेंच पाया धान भूखे-प्यासे गयी जान सुनो यह दु:ख-भरी दास्तान! सुनो कि इस देश में कैसे मरता है किसान! मेरे देश के हुक़्मरानो! यहाँ के आला अफ़

जीवन-संदेश प्रसारित करता कविता-संग्रह - बारिश मेरा घर है

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कविता संकलनों के न बिकने के सतत रुदन के बीच युवा कवि कुमार अनुपम के पहले संकलन का साल भर के भीतर ही दूसरा संस्करण आ जाना एक सुखद ख़बर है. आज असुविधा पर इसकी एक विस्तृत, आत्मीय और तलस्पर्शी समीक्षा सुपरिचित कवि-लेखक उमेश चौहान द्वारा. ·    उमेश चौहान साहित्य अकादमी की नवोदय योजना के अंतर्गत वर्ष 2012 में प्रकाशित युवा कवि कुमार अनुपम का प्रथम कविता-संग्रह ' बारिश मेरा घर है ' शिल्प , विषय - वस्तु व बिम्बों की दृष्टि से आकर्षक है . युवा होने के बावजूद कुमार अनुपम की कविताएँ सधी हुई तथा लक्ष्य पर सीधा निशाना साधती हुई लगती हैं . इस संग्रह की भूमिका में ज्ञानेंद्रपति ने लिखा है , "किसी संभावना-समृद्ध युवा-कवि का पहला संग्रह स्वाभाविक रूप से एक प्रीतिकर ताजगी लिए होता है और वह अगर एक स्मृति-सम्पन्न कवि व्यक्ति हुआ तो उसके अभी-अभी उच्चारित शब्दों में भी कहीं दूर से आती हुई-सी एक आवाज़ होती है." कुमार अनुपम की कविताओं को पढ़ने वाला हर व्यक्ति निश्चित रूप से उनके इस वक्तव्य से पूरी तरह से सहमत होगा. ' कविता नयनतारा डैश डैश डैश ' शीर्षक कविता

मीडिया ने मोदी को पी एम बना दिया है - शिरीष कुमार मौर्य की दो नई कवितायें

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जिन दिनों इस देश में हिटलर के असली वाले अवतार की ताज़पोशी की असली और आभासी तैयारियाँ चल रही हैं, यह संभव नहीं कि प्रगतिशील समाज बनाने के स्वप्न देखने वाला कवि खामोश रह सके. ठीक है कि बहुत से लोग धीरे धीरे प्रेम और प्रकृति की ठण्डी छांह में सुस्ता रहे हैं और मुग्धता के प्रताप पर उठे सवाल को मूर्खता का प्रताप बता रहे हैं, लेकिन इसी के बीच कवियों का एक बड़ा हिस्सा इस आसन्न संकट के ख़िलाफ़ तैयारी में लगा है. शिरीष की ये दो कवितायें उस तैयारी का हिस्सा हैं जो अपनी साहित्यिक दुनिया के भीतर भी सवाल खड़े करती हैं और बाहर भी नाम लेकर सवाल पूछने की हिम्मत करती हैं.    फोटोग्राफ : ओमेश लखवार  मीडिया ने मोदी को पी एम बना दिया है पटाखे फूट रहे हैं समय से पहले दीवाली आ गई लोगो लड्डू बंट रहे हैं गुजरात से यू पी तक मोदी की मां समझ नहीं पा रही हैं क्‍या हो रहा है चैनल वाले उनके पीछे पड़े हैं आपको कैसा लग रहा है वो आयुवृद्ध महिला इतना कह पायीं हैं कि नरेन घर छोड़कर भागा तो फिर सीधे मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेते ही दिखा महेन्‍द्रभाई दर्जी मोदी के बालसखा मोदी के व्‍यक्ति-