रितेश मिश्र की कविताएँ
रितेश मिश्र की कविता से मेरा पहला परिचय हुआ था माँ पर लिखी उनकी एक कविता से. तब चौंका था. हिंदी में और दूसरी भाषाओं से भी जो माँ पर जो कविताएँ पढ़ी थीं उनमें एक अजीब सी भावुकता और अपराधबोध अक्सर ही पाया था. रितेश की उस कविता में यह दोनों ही तत्व सिरे से ग़ायब थे, बल्कि वह एक प्रश्नवाचक चिह्न के साथ उपस्थित थे और असुविधा पैदा करने वाली वह कविता मन को आद्र करने की जगह मष्तिष्क को उद्वेलित करती थी. उसके बाद से ही मुझे रितेश की कविताओं की तलाश रहने लगी लेकिन उन्हें अपने कवि होने को लेकर अक्सर लापरवाह और निस्संग ही पाया. कहना न होगा कि आत्ममुग्धता के इस दौर में यह एक दुर्लभ दुर्गुण है. पेशे से पत्रकार रितेश देश विदेश की कविताओं के बड़े कठोर आलोचक और दीवाने पाठक तो हैं ही साथ में एक पत्रकार के रूप में भी खुद को उन्होंने धंधेबाज होने या रुटीन रिपोर्टिंग में उलझाने की जगह लगातार एक जनपक्षधर हस्तक्षेप का प्रयास किया है. उनकी एक कविता हमने दखल और प्रतिलिपि की साझी पहल पर प्रकाशित पुस्तिका 'बेरोज़गारी की कविताएँ' में भी शामिल की है. आज असुविधा पर उनकी कविताएँ प्रस्तुत करते हुए मुझे