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द पियानो टीचर: स्त्री की दमित इच्छाओं का उच्छास

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विजय शर्मा जी ने पहले भी असुविधा पर फिल्मों के बारे में लिखा है जिन्हें यहाँ क्लिक करके पढ़ा जा सकता है . पढ़िए उनका एक और आलेख पियानो एक यूरोपीय वाद्य है जो वहाँ प्रत्येक कुलीन परिवार का हिस्सा होता है। भारतीय वाद्य न होते हुए भी यह भारतीय संस्कृति का अंग बना हुआ है। जब अंग्रेज यहाँ आए तो जाहिर-सी बात है वे अपने साथ अपनी सभ्यता-संस्कृति भी लेते आए। भारत के उच्च और उच्च मध्य वर्ग ने अपने आकाओं से काफ़ी कुछ ग्रहण किया, पियानो से लगाव उसका एक हिस्सा है। इंग्लिश माध्यम के स्कूलों में इसे सीखने-सिखाने का काम अब भी चलता है। इन स्कूलों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का यह एक अनिवार्य भाग होता है। इसी तरह हिन्दी फ़िल्मों में भी पियानो अहम भूमिका अदा करता है। बचपन में जब मैं फ़िल्म में पियानो बजता देखती थी तो समझती थी कि यह अवश्य ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड की तरह का बाजा है, जिसे चला कर छोड़ दिया जाता है और वह चलता रहता है, क्योंकि अक्सर हीरो-हिरोइन पियानो बजाना शुरु करते, फ़िर नाचने लगते और पियानो बजता रहता। हाँ, कुछ फ़िल्मों में बाकायदा इसे गाना खतम होने तक बराबर बजाते हुए दिखाया जाता था। फ़िर बड़