मेरी हथेलियों में नहीं हैं प्रेम की कविताएं - प्रतिभा कटियार
कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे मित्रता की प्रगाढ़ता का अनुभव करने के लिए बार बार मिलने की दरकार नहीं होती. प्रतिभा से दोस्ती जब तुरंता बहस वाले फेसबुकिया नहीं अपेक्षाकृत दीर्घजीवी ब्लाग के जमाने की है...फिर वह हमारे अनुरोध पर "कविता समय" में आईं और पहली रु ब रु मुलाकात हुई. कविता की तरह ही जीवन में सहज और मस्त प्रतिभा का आज जन्मदिन है. मैसेज बाक्स में बधाई की औपचारिकता की जगह उनकी यह कविता जो उन्होंने काफ़ी दिनों पहले भेजी थी. हज़ार साल जियो प्रतिभा और ऐसे ही जियो. मुझे माफ करना प्रिय इस बार बसंत के मौसम में मेरी हथेलियों में नहीं हैं प्रेम की कविताएं बसंत के सुंदर कोमल मौसम में मेरी आंखों में उग आये हैं पत्थर के कुछ ख्वाब ख्वाब जिनसे हर वक्त रिसता है लहू और जो झकझोरते हैं उदास मौसमों को बेतरह ख्वाब जो चिल्लाकर कहते हैं कि बसंत का आना नहीं है सरसों का खिल जाना भर नहीं है बसंत का आना राग बहार की लहरियों में डूब जाना कि जरूरी है किसी के जीवन में बसंत बनकर खिलने का माद्दा होना मुझे माफ करना प्रिय कि कानों में नह