प्रकृति करगेती की तीन कविताएँ
पेशे से पत्रकार प्रकृति करगेती एकदम युवा पीढ़ी की कवि हैं. अब तक कई जगहों पर छप चुकी प्रकृति की कविताओं में एक भव्य सादगी है भाषा की तो अनुभवों की बारीक़ पच्चीकारी भी. उनके पास ओबजर्वेशंस हैं और उन्हें कविता में कहने की कला भी वह लगातार सीख रही हैं और परिमार्जित कर रही हैं. असुविधा पर उनका स्वागत है. नंबर लाइन मैं होने , और न होने की छटपटाहट में खुश हूँ न होना मुश्किल है और होना एक संभावना होने में जो सब होगा , उतना ही नहीं होने में नहीं होगा पर इस होने और न होने के बीच एक शून्य है मेरे पास उसी के आगे होना है , और उसी पीछे न होना जो भी हो या न हों मैं इस होने और न होने की छटपटाहट में खुश हूँ क्यूँकि मैं दोनों ही में अंतहीन हूँ सभ्यता के सिक्के सभ्यता अपने सिक्के हर रोज़ तालाब में गिराती है कुछ सिक्के ऐसे होते , जिनपर लहलहाती फ़सल की दो बालियाँ नक्काश होती हैं या कुछ पर किसी महानुभाव की तस्वीर या गए ज़माने का कोई विख्यात शासक ही ये सभी , और इनके जैसे कई सिक्के सभ्यता की जेब से सोच समझकर ही गि