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सुमन केशरी की ग्यारह कविताएँ

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सुमन जी परम्परा के साथ एकात्म होने की हद तक तादात्म्य बिठा कर अपने समय से सीधा संवाद करने वाले विरले कवियों में से हैं. मिथकों, लोक कथाओं और पारम्परिक स्रोतों से जितना ईंधन उन्होंने लिया है उतना शायद ही किसी समकालीन कवि ने. और इस आँच पर जो पक कर निकला है वह समय की विद्रूपताओं को उद्घाटित करने और उनसे टकराने के लिए अपने संयमित किन्तु दृढ़ स्वर में प्रतिबद्ध काव्य संसार है. हमारे अनुरोध पर उन्होंने असुविधा को ये कविताएँ उपलब्ध कराई हैं, देरी के लिए माफ़ी के साथ हम उनके आभारी हैं. मछलियों के आँसू.. वे मछलियों के आँसू थे जो अब उस विशाल भवन की दीवारों पर बदनुमा दाग बन कर उभर रहे थे अलग अलग शक्ल अख्तियार करते.. ये धब्बे बढ़ते चले जाते थे ऊपर और ऊपर... एक दिन देखा छत पर आकृतियाँ बन गई हैं घड़ियाल , मछली , घोंघे , सीप , बगुले-बतखें , मान सरोवर वाले हँसों की.. कुछ अनजानी वनस्पतियाँ उग आई थीं छिटपुट कहीं कहीं आसमान सूखा था निपूती विधवा की आँखों – सा एकदम विरान निष्प्राण... विदा होती बेटियाँ मैं देखना चाहती थी विदा होती बेटियों की आँखों म

मुसदिक़ हुसैन की कविताएँ

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वीर मुंशी की पेंटिंग गूगल से    मुसदिक़ हुसैन की कविताएँ अनुवाद : अशोक कुमार पाण्डेय कश्मीर में होना ही एक परिचय है इन दिनों. अपनी पहचान और राष्ट्रीयता के बहुसंस्तरीय संकटों में उलझा लल द्यद और शेख़ नुरूद्दीन का यह प्रदेश आज हब्बा खातूनों की आर्त पुकारों का देश है, कई कई रंग की बंदूकों के साए में पलता.  श्रीनगर में रहने वाले मुसदिक़ अभी-अभी अठारह के हुए हैं और बारहवीं की परीक्षा पास की है. अपने हमउम्र युवाओं की तरह सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं. उनके फेसबुक पेज़ ‘एम के’ के अलावा अंग्रेज़ी में लिखी उनकी कविताएँ पहल के माध्यम से पहली बार किसी प्रिंट माध्यम में छपी हैं. वहाँ से साभार  1-        तुम्हारी आत्मा को शांति मिले -------------- अँधेरों मे और आगे जहां आसमान किसी पुराने-जर्जर निगेटिव सा लगने लगता है उम्मीदों के साहिल पर मैंने इंतज़ार अकेले किया – एक क्लाइमैक्स मेरी अंतड़ियों मे डूबता है। मैं आने जाने वालों की अर्थहीन आवाज़ें सुनता हूँ लेकिन मेरी आँखें प्रतिध्वनियों से धुंधली हुई जाती हैं आरिफ़-आरिफ़-आरिफ़ शौक़