चेष्टा सक्सेना के छंद
चेष्टा छंद में लिखती हैं. खरा और तीख़ा. कवि कहलाये जाने की आकांक्षा उनके यहाँ नहीं है और न ही पोलिटिकली करेक्ट होने की. रोज़ ब रोज़ के निजी और सामाजिक जीवन की विसंगतियों को वह ज़रूरी तंज़ के साथ कहती चली जाती हैं और यही उनकी ताक़त है. हिंदी के अलावा बुन्देली में भी वह लिखती हैं और उम्मीद है आप जल्द ही वह भी पढेंगे. (एक) सरकार हमारी है करारी धन्ना सेठों की हितकारी इनकी बात से इतर जो बोले पाकिस्तान की हो तैयारी गाज गिराते हैं ये उसी पर जिसमें भी पायें खुद्दारी तिनका भी ये मुफत न देते बहुत ही पहुँचे हैं व्यापारी हम गर कुछ पूछें इनसे तो कहते क्या औकात तुम्हारी साधू , बाबा और सन्यासी जाप करें ये सब सरकारी हाँ में हाँ तुम जाओ मिलाते चाहो गर बनना अधिकारी (दो) जिंदा हैं पर मरे-मरे से सच से वो कुछ डरे-डरे से। रहमत उनको मिलती है जो दर पर दिनभर गिरे-पड़े से। नियम रईसों पर हैं ढीले मजलूमों पर बड़े कड़े से। कैसे समझें दर्द हमारा जो सोने में जड़े-मढे से। इस सत्ता में स्वागत उनका चिकने हों जो बड़े घड़े से। (ती