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घनश्याम कुमार देवांश की कविताएं

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इस वर्ष के ज्ञानपीठ नवलेखन सम्मान से सम्मानित घनश्याम कुमार देवांश युवा कवियों के उस विरल समूह से हैं जो और सब तो छोड़िए, फेसबुक पर भी नहीं पाये जाते। अपने चुने हुए एकांत मे पिछले सात-आठ सालों से लगातार कविताएं रचते घनश्याम जीवन के उतार चढ़ाव को अपनी सहज भाषा और सधे शिल्प मे सामने रख देते हैं। उनकी कविताओं मे किसी जल्दबाज़ी की जगह एक प्रौढ़ ठहराव है। सीधी लगने वाली इन कविताओं मे पंक्तियों के बीच ढेर सारा खाली स्थान है और पाठक उसे अनुभूत किए बिना उन तक नहीं पहुँच सकता।   घनश्याम ने हमारे आग्रह पर अपने सद्य प्रकाश्य संकलन "आकाश में देह" से कुछ कविताएं असुविधा के लिए भेजी हैं।  कोई पाँच साल बाद उनकी कविताएं असुविधा पर दुबारा पोस्ट करते हुए मुझे हर्ष और संतोष की अनुभूति हो रही है।  वे थोड़े से पैसे वे थोड़े से पैसे भी खत्म हो गए जब वे दिन आ गए तो लगा उनका होना कंपकंपाती सर्दियों में आग की तरह होना था वे प्रलय में आखिरी बचे कुछ बीजों की तरह थे वे उन पत्तियों की तरह थे जिन्हें आँधियाँ भी नहीं उड़ा पाई थीं नदी की कोख में मछलियों और तपते आकाश में रूई क

सुजाता की कविताएँ

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सुजाता ने इधर हिन्दी कविता जगत में महत्त्वपूर्ण पहचान हासिल की है.दो साल पहले उनकी कविताएँ असुविधा पर प्रकाशित हुई थीं. अपने अलहदा कहन, परम्परा तथा आधुनिकता संपन्न भाषा संस्कार, टटका बिम्बों व सघन शिल्प तथा बौद्धिक तैयारी के साथ साहित्य जगत में प्रवेश कर कम समय में वह लगभग सभी महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं. आज उनके के कविता- संग्रह 'अनन्तिम मौन के बीच' की पांडुलिपि को भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन पुरस्कारों की श्रेणी में अनुशंसित किया गया है. उन्हें बहुत बधाई. यहाँ प्रस्तुत हैं इसी संकलन से कुछ कविताएँ. अनंतिम मौन के बीच दृश्य- 1 ( बात जहां शुरु होती है एक भंवर पड़ता है वहाँ , दलीलें घूमती हुई जाने किस पाताल तक ले जाती हैं) मैं कहती हूँ बात अभी पूरी नहीं हुई जवाब में तुम बुझा देते हो बत्ती बंद होता है दरवाज़ा उखड़ती हुई सांस में सुनती हूँ शब्द - अब भी तुम्हें प्यार करता हूँ स्मृतियाँ पुनव्र्यवस्थित होती हैं बीज की जगहों में भरता है मौन किसी झाड़ी मे तलाशती हूँ अर्थ कपड़े पहनते हुए कहती हूँ - एक बात अब भी रह गई है उधर सन्नाटा है नी