बंकर बस्ती - निदा नवाज़ की कविता
निदा नवाज़ हमारे लिए कश्मीर की आँख भी हैं और ज़बान भी. ख़बरों की भीड़ में कश्मीर का सच उनके यहाँ से मिलता है हमें. उनकी कविताएँ युद्ध भूमि के बीच बैठकर लिखी कविताएँ हैं...पागलपन के दौर में एक रौशनख़याल कवि के क़लम से बनी सच की तस्वीर...असुविधा आभारी है निदा भाई का कि उन्होंने इन कविताओं को आप तक पहुँचाने के लिए हमें चुना बंकर बस्ती (1) आँखों में आँखें डाल कर फुंकारता है डर बंकर के चारों तरफ़ बिछी रेज़र-वायर के नुकीले ब्लेड जैसे ढल जाते हैं साँपों के हज़ारों विष दन्तों में बेसाख़्ता तेज़ हो जाती हैं दिल की बेतरतीब-धड़कनें बंकर के अंदर से बन्दूकों के ट्रिगर्स पर उँगलियों का दबाव बढ़ने लगता है भूखी आँखों के चन्द जोड़े एक थरथराते देह पर साधने लगते हैं अचूक-निशाना इस बंकर-बस्ती के नुक्कड़ पर हर दिन मर जाता है कोई अल्हड़ बालक परिंदा एक बेनाम-मौत। (2) शाम होते ही हर तरफ़ फैल जाता है सियाह-सहमा-सन्नाटा लोग ढ़ल जाते हैं लाशों में सूरज डर के मारे सिकुड़ जाता है एक बड़े से रक्त-धब्बे में नीड़ों में सिमट चुके परिंदे मुश्किल से सुन पाते ह