उस शहर को हत्यारों के हवाले कैसे कर दें -- हिमांशु पांड्या की कविता
हिमांशु पेशेवर कवि नहीं हैं. वह घटनाओं पर कविता नहीं लिखते लेकिन उनका लिखना कई बार घटना की तरह घटित होता है. सांस्कृतिक आंदोलनों में सक्रिय उनका प्रतिबद्ध राजनीतिक मानस जब रचनात्मक शक्ल में आता है तो वह एक मानीखेज़ वक्तव्य में तब्दील हो जाता है. राजसमन्द की बर्बर घटना के बाद साम्प्रदायिकता के खौलते दहनपात्र में तब्दील उदयपुर को केंद्र में रखकर लिखी इस कविता के स्थानीय नाभिक की परिधि में हिंसा और नफ़रत से जलती ग्लोबल हक़ीक़त है. Konstantin Makovsky की पेंटिंग Still Life (Palace of Facets) इंटरनेट से साभार उस शहर को हत्यारों के हवाले कैसे कर दें आपको यह नौकरी क्यों चाहिए ? किसी को भी नौकरी क्यों चाहिए होती है चपंडुक बहरहाल मैंने गुरुगम्भीर चेहरा बनाकर कहा आपको सच सुनना है या आदर्शवादी उत्तर सच ! सच ! किसी रहस्य को जानने के रोमांच से वे उत्फुल्लित हो उठे. मैंने उन्हें निराश नहीं किया. असल में मुझे शादी करनी है और उसके लिए अपने पाँवों पर खड़ा होना जरूरी है तीर ने मलयकेतु को बेध दिया. चार महीने में मैंने वादा भी निभाया. और उस झीलों के शहर